भारत में लहराया परचम, डा राणा प्रताप सिंह का अविष्कार हुआ पेटेंट

दैनिक कांति 24 न्यूज़ ब्यूरो रिपोर्ट आज़मगढ़
डॉ. राणा प्रताप सिंह ने अपने बुलंद हौसले, कड़ी मेहनत और सच्ची लगन से यह साबित कर दिया कि यदि इंसान के अंदर जज़्बा है, तो कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है। उनके अद्वितीय आविष्कार को भारत सरकार ने 2021 में पेटेंट कर मान्यता दी, जिससे चिकित्सा क्षेत्र में एक नया अध्याय जुड़ गया।

डॉ. राणा प्रताप सिंह, पुत्र भगवती शरण सिंह, फूलपुर के सुदनीपुर उपकेंद्र पर कार्यरत अवर अभियंता देवेंद्र प्रताप सिंह के बड़े भाई हैं। यह परिवार मूल रूप से आलमपुर, बलिया का निवासी है। डॉ. राणा शुरू से ही मेधावी और कुशाग्र बुद्धि के धनी रहे हैं। उन्हें इंग्लैंड से दो बार स्कॉलरशिप भी मिली।

एमबीबीएस की पढ़ाई भारत से बाहर करने के बाद उन्होंने दिल्ली के एम्स और सफदरजंग अस्पताल में दो वर्षों तक अपनी सेवाएं दीं। वर्तमान में वे हरियाणा के एसएचकेएम गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में एनेस्थीसिया विशेषज्ञ के रूप में कार्यरत हैं।

विशेष आविष्कार:
2015 में, डॉ. राणा ने एक विशेष सिरिंज का आविष्कार किया, जो खून लेने के बाद स्वतः वायल में परिवर्तित हो जाती है। इस आविष्कार से वायल की जरूरत समाप्त हो गई, जिससे जांच प्रक्रिया सरल और सस्ती हो गई। यह नवाचार न केवल चिकित्सा क्षेत्र में खर्चों को कम करता है, बल्कि जांच प्रक्रिया को भी अधिक प्रभावी बनाता है।

परिवार को समर्पण:
डॉ. राणा ने अपनी इस सफलता को अपनी मां श्रीमती शांति सिंह और अपने परिवार को समर्पित किया। उन्होंने अपनी बड़ी बहन डॉ. सुषमा सिंह, बड़े भाई रुद्र प्रताप सिंह, छोटे भाई देवेंद्र प्रताप सिंह, भाभी कंचन सिंह, और बहन श्वेता सिंह के योगदान को खासतौर पर सराहा।

भविष्य की योजना:
डॉ. राणा का उद्देश्य है कि चिकित्सा क्षेत्र को और अधिक सस्ता और सरल बनाया जाए। उनका कहना है कि यह पहला आविष्कार उनके मिशन की शुरुआत मात्र है, और वे भविष्य में ऐसे और भी नवाचार करना चाहते हैं, जिससे चिकित्सा जगत को फायदा हो।

डॉ. राणा प्रताप सिंह का यह आविष्कार न केवल उनके लिए, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का विषय है। उनकी इस उपलब्धि ने भारत का परचम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी फहराया है।

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